ॐ श्री साई राम
अब भगवान अपने अवतरण के संकल्प को पूरा करने के लिए १९५० में नये मन्दिर प्रशान्ति निलयम में प्रतिष्ठित हुए तथा बंगलूर, ह्वाइट फील्ड में भी उन्होंने बृन्दावन नामक आश्रम स्थापित किया। वे प्रतिदिन भक्तों के बीच स्वयं चल कर जाते थे, भक्तों के पत्रों को लेते थे, उनसे वार्तालाप करते थे, चरणस्पर्श करने की अनुमति देते थे, सृजित करके विभूति देते थे। इस प्रकार वे दर्शन, स्पर्शन एवं सम्भाषण का अवसर प्रदान करते हुए भक्तों को अविस्मरणीय आनन्द का अनुभव कराते थे। कुछ भक्तों को स्वयं चुनकर साक्षात्कार दे कर उनकी समस्याओं का समाधान करते थे। उन्होंने नियमित भजन का आयोजन भी प्रारम्भ किया। स्लेट पर ओम् लिख कर बच्चों को आध्यात्मिक यात्रा आरम्भ कराते थे। एक बार मानव में सन्निहित ऊर्जा संबंधी विश्व का महान वैज्ञानिक वरानोवस्की स्वामी की ऑरा (प्रभामंडल,शरीर से निकलने वाली ऊर्जा की किरणों) का अध्ययन करने के लिए आया और घोषित किया कि स्वामी के प्रभामंडल का आध्यात्मिक नीला रंग असीमित है, रजत और सुनहले रंग के प्रभामंडल के साथ भक्तों को आच्छादित करते हुए गुलाबी प्रेम का प्रभामंडल किसी सामान्य मानव का नहीं हो सकता।
इसी के साथ ही अवतार गाथा की तीसरी श्रृंखला समाप्त होती है।
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